Approval: मध्य प्रदेश में अब वन विभाग के रेंजर, वनपाल और वन रक्षकों के खिलाफ पुलिस सीधे तौर पर केस दर्ज नहीं करेगी। केस दर्ज करने के लिए कलेक्टर की अनुमति या जांच में आरोप साबित होना अनिवार्य होगा।
क्या हैं नए निर्देश?
- ड्यूटी के दौरान रियायत:
- यदि वन अधिकारी या कर्मचारी ड्यूटी के दौरान बल या शस्त्रों का प्रयोग करते हैं, तो उनके खिलाफ सीधे केस दर्ज नहीं होगा।
- पुलिस को पहले कलेक्टर की अनुमति लेनी होगी या कलेक्टर की जांच में यह साबित होना चाहिए कि केस दर्ज करना आवश्यक है।
- कैसे हुई यह व्यवस्था लागू?
- प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बल प्रमुख, भोपाल ने 29 अक्टूबर को पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा था।
- इसके आधार पर पुलिस मुख्यालय (पीएचक्यू) ने भोपाल, इंदौर पुलिस आयुक्त और सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को यह निर्देश जारी किए।
- कानूनी आधार:
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 197 के तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि वन अधिकारी-कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन करते समय बल और शस्त्रों का उपयोग कर सकते हैं।
- गृह मंत्रालय (11 जून 1996) और वन विभाग (28 मई 2004) की अधिसूचनाओं के आधार पर यह व्यवस्था बनाई गई है।
पुलिस कब कार्रवाई करेगी?
- यदि जांच में साबित हो जाता है कि शस्त्रों का उपयोग अनावश्यक रूप से या आवश्यकता से अधिक बल प्रयोग करने के लिए किया गया है, तब पुलिस आगे की कार्रवाई कर सकेगी।
- पुलिस आयुक्त और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया गया है कि वे बिना कलेक्टर की अनुमति वन अधिकारियों के खिलाफ कोई नामजद रिपोर्ट दर्ज न करें।
इसका असर क्या होगा?
✅ वन अधिकारियों को कार्य करने में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी।
✅ अवैध कटाई और वन अपराध रोकने में बल प्रयोग करने में झिझक कम होगी।
✅ अनावश्यक कानूनी मामलों से बचाव होगा।
⚠️ हालांकि, यदि बल का दुरुपयोग हुआ, तो जांच के बाद कार्रवाई संभव होगी।
यह निर्णय वन विभाग के कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग करने पर उनके खिलाफ जांच के बाद कार्रवाई भी सुनिश्चित करता है।
source internet… साभार….
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