Decision: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि मोटर दुर्घटनाओं में घायल व्यक्तियों के लिए “गोल्डन आवर” के दौरान कैशलेस इलाज की योजना जल्द से जल्द लागू की जाए। यह निर्देश मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 2(12-ए) और धारा 162(2) के तहत दिया गया है।
गोल्डन आवर का महत्व
गोल्डन आवर घायल होने के बाद के पहले एक घंटे को कहते हैं, जब समय पर इलाज से घायल व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे जीवन बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवधि बताया।
अदालत का निर्देश
- जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने केंद्र सरकार को 14 मार्च तक योजना तैयार करने का आदेश दिया।
- सरकार को योजना का विवरण 21 मार्च तक अदालत में प्रस्तुत करना होगा।
- अदालत ने कहा कि इसके बाद और समय नहीं दिया जाएगा।
धारा-162 की कानूनी बाध्यता
मोटर दुर्घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने धारा-162 के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि पैसे की चिंता या प्रक्रियात्मक बाधाओं के कारण अक्सर इलाज में देरी से जानें चली जाती हैं।
- अदालत ने केंद्र को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि गोल्डन आवर में दुर्घटना पीड़ित को कैशलेस इलाज मिले।
- बीमा कंपनियों को इलाज के खर्च का भुगतान करना होगा, जैसा कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत निर्धारित है।
हर जीवन अनमोल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “जब कोई व्यक्ति दुर्घटना का शिकार होता है, तो उसके रिश्तेदार या प्रियजन तुरंत मदद के लिए नहीं होते। घायल को गोल्डन आवर में इलाज मिलना चाहिए क्योंकि हर जीवन अनमोल है।”
अस्पताल में देरी और समस्याएं
अदालत ने कहा कि कई बार अस्पताल पुलिस के आने का इंतजार करता है या इलाज से पहले शुल्क भुगतान की मांग करता है। यह प्रक्रिया इलाज में देरी का कारण बनती है।
- केंद्र सरकार ने 2022 में एक प्रस्तावित योजना का मसौदा पेश किया था, जिसमें इलाज की अधिकतम लागत 1.5 लाख रुपये और सात दिनों तक कवरेज की बात कही गई थी।
- हालांकि, योजना अभी तक लागू नहीं हो सकी, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।
आगे की राह
यह आदेश सरकार को सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए तत्काल और प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर अस्पताल और बीमा कंपनी को कानून के तहत अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा।
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