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Order: मालेगांव ब्लास्ट केस में पूर्व ATS अफसर का दावा: RSS प्रमुख भागवत को गिरफ्तार करने का मिला था आदेश

मालेगांव ब्लास्ट केस में पूर्व ATS अफसर

Order: मुंबई | महाराष्ट्र के चर्चित मालेगांव ब्लास्ट केस में पूर्व ATS इंस्पेक्टर महबूब मुजावर ने एक चौंकाने वाला दावा किया है। एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था। मुजावर का आरोप है कि उन्हें यह आदेश “भगवा आतंकवाद” की थ्योरी स्थापित करने के उद्देश्य से दिया गया था। उन्होंने कहा कि उनके पास इस आदेश के दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं। उनका दावा है कि अब जबकि सभी आरोपियों को कोर्ट से बरी कर दिया गया है, यह साबित हो गया है कि ATS की जांच में गंभीर खामियां थीं।


पूर्व ATS अफसर महबूब मुजावर ने क्या कहा?

“कोई भगवा आतंकवाद नहीं था। सब कुछ फर्जी था। मैं किसी के पीछे नहीं गया क्योंकि मुझे सच्चाई का अहसास हो गया था। मोहन भागवत जैसे व्यक्ति को पकड़ना मेरी क्षमता से बाहर था।”
— महबूब मुजावर, पूर्व ATS इंस्पेक्टर

मुजावर ने कहा कि उन्हें कुछ गोपनीय आदेश भी मिले थे, जिनमें राम कलसांगरा, संदीप डांगे, दिलीप पाटीदार जैसे नाम शामिल थे। उन्होंने इन आदेशों को “अन्यायपूर्ण और अव्यवहारिक” बताया।


31 जुलाई को सभी आरोपी बरी

2008 में हुए मालेगांव ब्लास्ट केस में NIA स्पेशल कोर्ट ने 31 जुलाई 2025 को सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया।
बरी किए गए आरोपी:

  • साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर
  • लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित
  • रमेश उपाध्याय
  • अजय राहिरकर
  • सुधाकर चतुर्वेदी
  • समीर कुलकर्णी
  • सुधाकर धर द्विवेदी

फैसला सुनाते हुए जज एके लाहोटी ने कहा कि जांच एजेंसियां आरोप साबित नहीं कर पाईं, इसलिए आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया


क्या हुआ था 2008 में?

  • 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में बम धमाका हुआ था।
  • इसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
  • शुरुआती जांच महाराष्ट्र ATS ने की, बाद में 2011 में यह केस NIA को सौंपा गया।
  • NIA ने 2016 में चार्जशीट दायर की थी।
  • इस केस में तीन जांच एजेंसियां और चार जज बदले गए।

पीड़ित पक्ष जाएगा हाईकोर्ट

पीड़ित पक्ष के वकील शाहिद नवीन अंसारी ने कहा है कि वे NIA कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे।

“इस मामले में जांच एजेंसियां और सरकार दोनों फेल हुई हैं। हम इस फैसले को चुनौती देंगे।”
— शाहिद अंसारी, पीड़ित पक्ष के वकील


राजनीतिक और सामाजिक असर

मुजावर के दावे ने इस केस को एक बार फिर से राजनीतिक बहस के केंद्र में ला खड़ा किया है।
जहां एक तरफ अदालत के फैसले के बाद “फर्जी भगवा आतंकवाद” की थ्योरी को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल और मानवाधिकार संगठनों ने न्याय प्रणाली और जांच की गुणवत्ता पर चिंता जताई है।

साभार … 

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