Saturday , 25 January 2025
Home Uncategorized Samadhi: गुरुसाहब बाबा की समाधि पर भूत-प्रेत करते हैं अपनी दास्तां बयां
Uncategorized

Samadhi: गुरुसाहब बाबा की समाधि पर भूत-प्रेत करते हैं अपनी दास्तां बयां

गुरुसाहब बाबा की समाधि पर भूत-

400 सालों से यहां पर लगता है भूतों का मेला, दूर होती है प्रेतबाधा

आनंद रामदास राठौर
Samadhi: चिचोली।
तहसील के अंतर्गत आने वाले ग्राम मलाजपूर में जनपद पंचायत चिचोली के तत्वावधान में पूज्य संत श्रीगुरूसाहेब बाबाजी की पवित्र समाधि स्थल पर लगने वाला धार्मिक मेला पौष मास की पूर्णिमा से बसंत पंचमी तक की समयावधि में विगत चार सौ वर्षों से लगते आ रहा हैं। इस वर्ष भी यह पवित्र धार्मिक मेला जिला प्रशासन से मिली अनुमति पश्चात पौष मास की पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 02 फरवरी बसंत पंचमी तक चलेगा।
देश भर में प्रसिद्ध हैं गुरुसाहब बाबा दरबार
गुरुसाहब बाबाजी के पवित्र धार्मिक स्थल मलाजपुर में विगत कई वर्षों से प्रतिवर्ष पौष मास की पूर्णिमा पर भूतों का बाजार भरता है। जी हां, यह किवंदंती नहीं, बल्कि शत -प्रतिशत सत्य है। यहां पर आसपास के ग्रामीण अंचलों व जिले भर से तथा पूरे मध्यप्रदेश के अलावा अन्य प्रांत आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि प्रदेशों से बड़ी संख्या में प्रेत बाधाओं से पीड़ित ग्रसित व्यक्ति यहां पर आता है। गुरुसाहब बाबाजी के दरबार की परिक्रमा के बाद समाधि पर मत्था टेकने व झाड़ लगाने से पीड़ित के शरीर में प्रवेश की गई प्रेतात्माएं हमेशा-हमेशा के लिए निकल जाती हैं और प्रेत- बाधाओं के फेर में आने वाले व्यक्ति को इससे मुक्ति मिल जाती है।


13 जनवरी से लगेगा मेला


मध्यप्रदेश के हृदय स्थल में सतपुड़ा की हरी भरी वादियों के बीच में बसे बैतूल जिले के प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र तहसील मुख्यालय के नगर चिचोली से उत्तर-पूर्व दिशा में लगभग 7 किमी की दूरी पर ग्रामीण अंचलों के ग्राम मलाजपुर में प्रसिद्ध गुरुसाहब बाबा की समाधि का मंदिर है। इस बार यहां पौष मास की पूर्णिमा 13 जनवरी से बसंत पंचमी 2 फरवरी की समयावधि में पूरे 21 दिन तक पवित्र गुरूसाहब बाबा की समाधि परिसर मलाजपुर में मेले का आयोजन जनपद पंचायत चिचोली के तत्वावधान में आयोजित किया जाता रहा है,


देवजी बने गुरुओं के साहेब


विक्रम संवत् 1700 में उदयपुर से एक परिवार मलाजपुर ग्राम के पास ही स्थित ग्राम कटकुही में आकर निवास करने लगा था। इस परिवार के मुखिया का नाम रायसिंग तथा पत्नी का नाम चंद्रकुंअर बाई था। यह परिवार कुशवाह वंश की बंजारा जाति का था। रायसिंग व इनकी पत्नी चंद्रकुंअर बाई की चार संतानें क्रमश: मोती सिंह, दमन सिंह, देवजी संत (गुरुसाहब बाबा) और हरिदास (जिनकी समाधि चिचोली थाने के पास ब्राह्मणपुरा में स्थित श्रीकृष्ण मंदिर परिसर में है) थे। रायसिंग के तीसरे पुत्र देवजी का बाल्यकाल से ही रहन-सहन व खाने-पीने का ढंग अजीबोगरीब था। देवजी एक बालक ही थे और वे बाल्यकाल में दूसरों के बैल, गायों को चराया करते थे। बालक देवजी बचपन से ही अपने चरवाहे साथियों को उनकी इच्छानुसार हवा में हाथ हिलाकर, लहराकर मनचाही मिठाइयां उत्पन्न कर उन्हें खिलाते रहते थे। तरह-तरह की जादुई लीलाएं कर वे बताते थे। जैसे-मिट्टी उठाकर उसका गुड़ बना देना, रेत उठाकर उसकी शक्कर बना देना तथा पत्थर हाथ से उठाकर उसका नारियल बना देना आदि चमत्कार बैल-गायों को चराते समय बालक देवजी अपनेे साथी चरवाहों को बताते थे। इस बात की चर्चा उन दिनों संपूर्ण क्षेत्र में आग की तरह फैल गई थी और बालक देवजी को देखने बड़ी संख्या में लोग वहां पहुंचने लगे थे। दिन-प्रतिदिन बढ़ती भीड़ से परेशान होकर रायसिंग ने अपने पुत्र देवजी को खिड़कीबाला (टिमरनी हरदा) में जैता बाबा के पास गुरुदीक्षा के लिए भिजवा दिया था। यहां पहुंचने पर भी देवजी की करिश्माई लीलाएं खत्म नहीं हुईं। उन दिनों की एक किवंदंती है कि गुरु जैता बाबा दोनों आंखों से सूरदास थे, उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था। जैता बाबा ने बालक देवजी को खेतों में खड़ी ज्वार की फसल की देखभाल का काम दिया। उसकी जागल करने को कहा, देवजी ज्वार की फसल की जागल करना छोड़ सारा दिन खेतों में पककर तैयार खड़ी ज्वार की फसल में घूम-घूमकर कहते फिरते राम की चिडिया, राम का खेत, चुगलो चिडिया भर भर पेट। उनकी इस लापरवाही और खुली छूट के कारण पंछी बेखौफ होकर ज्वार चुगने लगे और पंछियों ने पूरी फसल चुगकर चौपट कर दी। जब ज्वार की फसल काटने का समय आया तो बालक देवजी अपने गुरु जैता बाबा के पास गए और कहा कि गुरुजी मुझे खेत की ज्वार काटना है। देवजी की बात सुनकर वहां मौजूद अन्य शिष्यों को हंसी आ गई और उन्होंने अपने गुरु जैता बाबा से कहा कि देवजी ने ज्वार की फसल तो चिडियों को चुगा दी और अब वहां बचा ही क्या है? जो ये काटेगा। इस पर जैता बाबा ने कहा कि बालक देवजी की इच्छा ही है तो उसे ज्वार की फसल कटवा ही लेने दो। देवजी ने ज्वार की फसल काटकर खलिहान में लायी और उसकी दावन कर उड़ानी शुरु की तो इतना अनाज निकला कि पूरा खलिहान अनाज से भर गया। चारों ओर ज्वार ही ज्वार नजर आने लगी। अनाज रखने और भरने के लिए जगह ही नहीं बची। गांव में इसकी खबर आग की तरह फैली तो चारों ओर हाहाकार मच गया।
जैता बाबा भी अपने शिष्यों के साथ बालक देवजी के पास खलिहान में पहुंचे और वहां का दृश्य देखकर आश्चर्यचकित रह गए। जैता बाबा ने बालक देवजी से सवाल पूछा कि आप हो कौन? देवजी ने जैता बाबा को जवाब दिया कि मैं तो आपका शिष्य हूं और आप मेरे गुरु हैं। तब गुरु जैताबाबा ने देवजी से फिर सवाल किया कि आप मेरे शिष्य तो जरुर हैं मगर फिर भी आप कौन हों, मैं देखना चाहता हूं। तब देवजी ने अपने गुरु जैता बाबा से कहा कि आप मुझे देखना चाहते हों, तब जैता बाबा ने अपने शिष्य देवजी से कहा कि मैं बचपन से ही दोनों आंखों से अंधा हूं, सूरदास हूं। मुझे कुछ दिखाई नहीं देता और आप जैसे होनहार चमत्कारिक शिष्य को कौन नहीं देखना चाहेगा। तब बालक देवजी ने अपने गुरु जैता बाबा से कहा कि गुरुजी मैं आपके सामने खड़ा हूं आप मुझे देख लो, अचानक जैता बाबा ने अपनी दोनों आंखें खोली तो उन्हें सब कुछ दिखाई देने लगा, तब जैता बाबा बड़े प्रसन्न हुए और बालक देवजी से कहने लगे कि बेटा देवजी आप मेरे शिष्य जरुर हों, लेकिन मैं आज से तुझे अपना आशीर्वाद देता हूं कि आप गुरुओं के भी साहब रहोगे, तभी से बालक देवजी संत का नाम गुरुसाहब पड़ा और आज भी सभी उनके अनुयायी भक्त उन्हें गुरुसाहब बाबा के नाम से ही जानते हैं, पूजते हैं।


मन्नतें पूरी होने पर होता है तुलादान


मलाजपुर के पवित्र गुरुसाहब बाबा के दरबार पर मत्था टेकने और मन्नतें मांगने के बाद मन्नतें पूरी होने पर यहां गुड़ से उनका तुलादान भी किया जाता है। नि:संतान दंपत्तियों के बाबा के दरबार में आकर मत्था टेकने और अर्जी लगाने व नियम-संयम का पालन करने पर उन्हें संतान प्राप्त होती है। विषैला सर्प किसी व्यक्ति को काटे और वह मलाजपुर गुरु साहब बाबा के दरबार में पहुंचकर मत्था टेके और चरणामृत को सेवन कर यहां का रक्खन बंधवान व झाड़फूंंक करने के बाद जहर उतर जाता है और व्यक्ति ठीक हो जाता है।


गुरूसाहब दरबार में लगता है मेला


गुरुसाहब बाबा ने मलाजपुर में सन् 1770 में किशोर अवस्था में जीवित समाधि ले ली थी। तब से यहां पिछले 300 वर्षों से हर साल विशाल मेला पौष मास की पूर्णिमा से बसंत पंचमी तक लगता है। संपूर्ण दरबार व समाधि की देखरेख हेतु पांच महंत क्रमश: गप्पा, परमसुख, मूरतसिंह, नीलकंठ और वर्तमान में चंद्रसिंह हैं। आज तक मेले में कभी चोरी-डकैती की घटनाएं नहीं हुईं। प्रेत बाधाओं से मुक्ति पाने वाले लोगों की मेले की प्रथम रात्रि से ही भारी भीड़ लगी रहती है। यहां पर जिले का सबसे बड़ा मेला भी लगता है।


गुड़ हैं पर मक्खी नहीं, शक्कर हैं पर चींटी नहीं


साल भर गुरुसाहब बाबा की समाधि पर गुड़ चढ़ाने हेतु हजारों की संख्या में जनता यहां पहुंचती है तथा अपनी मनोकामना पूर्ण करती है। भारी मात्रा में यहां तुलादान व चढोत्तरी स्वरूप गुड़ व शक्कर चढाया जाता है। मगर पूरे समाधि परिसर में मक्खी व चीटियां नहीं पाई जाती।


पहले दिन भरता है भूतों का बाजार


मलाजपुर के गुरुसाहब बाबा के दरबार में हर साल लगने वाले मेले का शुरु दिन भूतों के बाजार का दिन माना जाता है। मेले के प्रथम दिन पूस मास की पूर्णिमा को पूरे दिन व रात भर समाधि परिसर की परिक्रमा करते हजारों की संख्या में भूत-प्रेत बाधाओं से पीड़ित व्यक्ति क्या पुरुष-क्या महिलाएं किलकारी मारते और तरह-तरह की आवाजें निकालते, भागते-दौड़ते परिसर की परिक्रमा करते देखे जा सकते हैं।


स्नान और परिक्रमा से भाग जाती हैं बाधाएं


मलाजपुर के पूर्वी छोर पर लगभग 2 किमी की दूरी पर बंधाराघाट नामक पवित्र स्थल है। प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति मलाजपुर आकर पहले सीधे यहां पहुंचता है, पूजा-पाठ कर यहां के जल से स्नान करता है। प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्ति जैसे ही बंधाराघाट में स्नान करता है उसके शरीर में समाया भूत-प्रेत अपना रंग दिखाना और बड़बड़ाना शुरु कर देता है। पीड़ित व्यक्ति को फिर यहां से सीधे गुरुसाहब बाबा के दरबार मलाजपुर लाकर समाधि स्थल के समक्ष खड़ाकर उसकी झाड़फूंक कर पानी और झाडू उतारी जाती है, फिर उसे पकड़कर दरबार की परिक्रमा चक्कर लगवाए जाते हैं। पुन: उसे समाधि स्थल लाकर पूछा जाता है और फिर प्रेत को कसम खिलवाकर व्यक्ति से मुक्ति दिलवाई जाती है। यह नजारा प्रत्यक्ष दिखता है दरबार में।


कब-कब चढ़ता है निशान


मलाजपुर में गुरुसाहब बाबा की समाधि स्थल पर निर्मित मंदिर पर साल में अघ्घन मास की पूर्णिमा एवं बैसाख मास की पूर्णिमा पर कुल दो बार निशान चढ़ाया जाता है। समाधि स्थल मंदिर पर चढ़ाए जाने वाले निशान के लिए सवा पांच मीटर सफेद खादी के कपड़े को पहले धोया जाता है फिर इसे सूखाकर हाथों के द्वारा सिलाई कर निशान बनाया जाता है। गुरुसाहब बाबा की समाधि स्थल से मुख्य द्वार पर दाहिनी ओर निर्मित चबूतरे पर लगे 35 फीट ऊंचे ध्वज स्तंभ पर प्रतिवर्ष दशहरे के दिन चढ़ने वाला सफेद खादी के 22 मीटर कपड़े से 35 हाथ लंबा हाथों से सिलकर बनाया गया निशान विधिवत् पूजा-अर्चना कर चढ़ाया जाता है। यह परंपरा लगभग 300 वर्षों से निरंतर चलती आ रही है। बहरहाल, यह आस्था है या अंधविश्वास यहां आकर कह पाना मुश्किल होता है।

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Maha Kumbh: प्रयागराज महाकुंभ में मध्यप्रदेश सरकार का “एकात्म धाम शिविर”

Maha Kumbh: मध्यप्रदेश सरकार के आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास ने प्रयागराज...

Fire: 3 मंजिला इमारत में आग, 50 लोगों को सुरक्षित निकाला गया

Fire: भोपाल के खानूगांव इलाके में शनिवार सुबह 8 बजे एक तीन...

Sampada Portal: सम्पदा पोर्टल-2.0 में तकनीकी खामियों से रजिस्ट्री प्रक्रिया में दिक्कतें

Sampada Portal: मध्यप्रदेश में हाल ही में लॉन्च किए गए सम्पदा पोर्टल-2.0...