Vat Savitri Vrat – भोपाल – हर साल आने वाले ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत को महिलाएं बरगद के पेड़ की ही पूजा क्यों करती है? और यह व्रत क्यों रखती है बताया जाता है कि वट सावित्री का व्रत करने से संतान प्राप्ति की और पति की लंबी उम्र की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है इस कारण महिलाएं हर साल आने वाले वट सावित्री की पूजा और व्रत रखती है
इस व्रत के दिन बरगद के पेड़ की ही पूजा क्यों करती है महिलाएं | Vat Savitri Vrat
धर्म ग्रंथों के अनुसार बरगद के पेड़ में त्रिदेव का वास होता है। इसकी जड़ में भगवान ब्रह्म छाल में भगवान विष्णु और शाखा में भगवान शिव का निवास माना जाता है। इसके अलावा सावित्री ने बरगद के पेड़ के नीचे ही सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से यमराज को प्रसन्न कर आशीर्वाद और पति का जीवन वापस पाया था।
इसके कारण महिलाएं इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। इसके अलावा त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने वनवास के समय तीर्थराज प्रयाग में ऋषि भारद्वाज के आश्रम में वट वृक्ष की पूजा की थी। यह भी बरगद के पूजे जाने की वजह है।
बताया जाता है कि हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को वट सावित्री यह व्रत आता है और महिलाएं इस दिन व्रत रखकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए यह व्रत रखती है और बरगद के पेड़ की पूजा करती है । कहा जाता है कि इस व्रत के रखने से हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है और संतान प्राप्ति, पति की लंबी उम्र की कामना भी पूर्ण होती है।
इस साल 18 मई को यह व्रत होगा | Vat Savitri Vrat
आइये जानते हैं वट सावित्री व्रत की डेट, क्यों करते हैं बरगद की पूजा, जानिए इसकी कथा। वट सावित्री व्रत डेट: ज्येष्ठ माह में अमावस्या तिथि की शुरुआत 18 मई रात 9.42 बजे से हो रही है और यह तिथि 19 मई को रात 9.22 बजे संपन्न हो रही है।
इसलिए उदया तिथि में यह व्रत 19 मई को रखा जाएगा। वट सावित्री व्रत का महत्व: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन बरगद की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस व्रत के प्रभाव से संतान की प्राप्ति होती है और पति दीर्घायु होता है।
वट सावित्री व्रत पूजा विधि
1. इस दिन सुबह उठकर स्नान ध्यान के बाद घर के मंदिर में दीप जलाएं।
2. वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की मूर्ति रखें।
3. मूर्ति, वट वृक्ष को जल अर्पित करें और पूजा करें।
4. लाल कलावा को वृक्ष की परिक्रमा करते हुए सात बार बांधें।
5. व्रत कथा सुनें और भगवान का ध्यान करें।
क्या है वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat
ट सावित्री व्रत कथा के अनुसार भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी, उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए 18 वर्ष तक यज्ञ में मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। इसके बाद देवी सावित्री प्रकट हुई, की धर्म ग्रंथों में सावित्री का अर्थ वेदमाता गायत्री और सरस्वती बताया गया है।
बहरहाल, प्रकट होने के बाद सावित्री देवी ने वरदान दिया कि राजा तुम्हें तेजस्वी कन्या की प्राप्ति होगी। सावित्री देवी की कृपा से कन्या जन्म के कारण राजा ने उसका नाम सावित्री रख दिया। यह कन्या रूपवान और सुशील थी।
लेकिन उसे योग्य वर नहीं मिल पा रहा था। इससे अश्वपति दुखी रहते थे, आखिर में उन्होंने कन्या को स्वयं ही वर तलाशने की आज्ञा दी। पिता की आज्ञा मानकर सावित्री तपोवन में भटकने लगीं।
एक जगह राज्य छिन जाने से साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, उनके पुत्र सत्यवान का सावित्री ने वरण कर लिया। लेकिन सत्यवान अल्पायु थे, इस समय पहुंचे देवर्षि नारद ने विवाह न करने की सलाह दी।
लेकिन सावित्री नहीं मानीं और सत्यवान से विवाह रचाया। इधर पति की मृत्यु का समय नजदीक आया तो सावित्री तपस्या करने लगीं और आखिरकार पति की मृत्यु को टाल दिया और यमराज को पति को नहीं ले जाने दिया। इससे पति की दीर्घायु के लिए वट सावित्री व्रत रखा जाने लगा।
Source – Internet
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