Guru Pradush Vrat – वैसे तो हिन्दू धर्म में प्रदोष व्रत सभी व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। क्योंकि यह व्रत भगवान शिव की विशेष पूजा के लिए समर्पित है। इस व्रत में भी गुरु प्रदोष व्रत का एक अपना अलग ही स्थान है। मान्यता यह भी है कि यदि किसी को सफलता पाने में भारी दिक्कते आ रही है तो उसे इस गुरु प्रदोष व्रत का जरूर ही करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के मुताबिक कोई भी व्रत तभी पूरा होता है, जब पूजा के समय उसकी कथा को श्रद्धापूर्वक पढ़ा तो अवश्य ही उस व्यक्ति के कामों मे आ रही सारी परेशानियां पल भर में ही दूर हो जाती है।
कब आता गुरु प्रदोष व्रत | Guru Pradush Vrat
आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी यानी कि प्रदोष व्रत की तिथि का आरंभ 15 जून को सुबह 8 बजकर 32 मिनट से हो रही है और यह तिथि 16 जून को सुबह 8 बजकर 39 मिनट तक ही रहेगी। जबकि प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त 15 जून को शाम 07बजकर 20 मिनट से रात 09 बजकर 21 मिनट तक ही रहेगा।
इन व्यक्तियों को अवश्य ही रखना चाहिए गुरु प्रदोष का व्रत
हिन्दू धर्म के ग्रंथों के अनुसार जिन व्यक्तियों के जीवन में गुरु अशुभ फल देते हुए दिखाई दें, ऐसे व्यक्ति को ये व्रत अवश्य ही करना चाहिए। और इस व्रत को करने से पितरों का भी आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। सफलता के लिए यह व्रत बहुत लाभकारी है।
उस व्यक्ति द्वारा इस व्रत को रखने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और उसे जल्द ही भौतिक सुख सुविधा की प्राप्ति होती है और उसकी मृत्यु हो जाने पर उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के करने से 100 गायों का दान करने का फल प्राप्त होता है।
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क्या है गुरु प्रदोष व्रत पूजा विधि | Guru Pradush Vrat
1 – सुबह जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान ध्यान कर साफ कपड़े पहनकर पूजा का संकल्प लें।
2 – पूजा करने के स्थान को सबसे पहले साफ करें,पूजा में बेलपत्र, अक्षत, धूप से शिव और पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा करें और गंगाजल से शिव का अभिषेक करें।
3 – गुरू प्रदोष का यह व्रत निर्जला रखा जाता है, प्रदोषकाल में दोबारा स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
4 – जहां पर आप पूजा करते है उस स्थान को सबसे पहले शुद्ध करें, उसके बाद उस स्थान पर गाय के गोबर से लीपकर एक मंडप तैयार करें और इसमें पांच रंग से रंगोली बनाएं।
5 – उत्तर और पूर्व दिशा में मुंह करके तथा कुश आसन पर बैठकर ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव को जल चढ़ाएं।
6 – और इस दिन आपको अवश्य ही गुरु प्रदोष व्रत की कथा को सुनना चाहिए।
गुरु प्रदोष व्रत कथा
गुरु प्रदोष व्रत कथा के अनुसार एक समय देवासुर संग्राम छिड़ गया। इसमें देवराज इंद्र और असुरराज वृत्तासुर की सेना में जमकर युद्ध हुआ। और इस युद्ध में देवताओं ने दैत्य सेना को हराकर। युद्ध स्थल पर वृत्तासुर आ पहुंचाए उसने अपनी माया के अनुरूप विकराल रूप धारण कर लिया। इससे डरकर सभी देवताओं ने इंद्र के मार्गदर्शन से गुरु बृहस्पति का भी आव्हान किया।
एक समय चित्ररथ अपनी इच्छा के अनुसार कैलाश पर्वत पर चला गया l
इस पर देव गुरु बृहस्पति ने कहा- हे देवेन्द्र! तुम वृत्तासुर की यह कथा सुनो। पहले के समय में एक चित्ररथ नाम का राजा था, जो कि सुरम्य वन है इसी का सम्पूर्ण राज्य था। यह भगवान के दर्शन की अनुपम भूमि है। एक समय में चित्ररथ अपनी इच्छा के अनुसार कैलाश पर्वत पर चला गया।
यहां पर भगवान के स्वरूप और वाम अंग में मां जगदम्बा को विराजमान देख चित्ररथ हंसा और हाथ जोड़कर शिव शंकर से बोला- हे प्रभो। हम माया से मोहित हो विषयों में फंसे रहने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं, लेकिन देव लोक में ऐसा कहीं दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि कोई स्त्री सहित सभा में बैठे।
चित्ररथ पर माता पार्वती क्रोधित हुई और शाप दे दिया l Guru Pradush Vrat
चित्ररथ की ऐसी बात सुनकर सर्वव्यापी भगवान शिव हंसकर बोले कि हे राजन। मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता काल कूट महाविष का पान किया है। उसके बाद भी तुम साधारण जनों की भांति मेरी हंसी उड़ाते हो, तभी पार्वती बहुत क्रोधित हो गईं और चित्ररथ की ओर देखते हुई कहने लगीं-ओ दुष्ट तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ मेरी भी हंसी उड़ाई है, तुझे अपने कर्मों का फल अवश्य ही भोगना पड़ेगा।
प्रदोष व्रत का फल, बुध प्रदोष से मिलता है
माता जगदंबा ने कहा कि मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि तू साधु – संतों का मजाक और दुस्साहस नहीं कर पाएगा। और अब तू दैत्य का रूप धारण कर विमान से नीचे गिर, तुझे मैं शाप देती हूं कि तू अभी पृथ्वी पर चला जा। जब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को ये शाप दिया तो वह तुरंत ही विमान से गिरकर, राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और प्रख्यात महासुर नाम से वह प्रसिद्ध हुआ। और ये महासुर बाद में अगले जन्म में तवष्टा ऋषि के श्रेष्ठ तप के बल पर वृत्तासुर के रूप में उत्पन्न हुआ।
गुरु के वचनों को सुनकर देवताओं ने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत पूर्ण किया l Guru Pradush Vrat
यह वृत्तासुर शिव भक्ति में ही लीन रहता था। इसने तपस्वी और कर्मनिष्ठ जीवन जिया और बाद में इसने गंधमादन पर्वत पर उग्र तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। इसलिए मेरे परामर्श से इस पर विजय के लिए तुम्हें गुरु प्रदोष व्रत जरूर करना पड़ेगा। और गुरु के वचनों को सुनकर सब देवता प्रसन्न हुए और गुरुवार को त्रयोदशी तिथि को (प्रदोष का व्रत )विधि – विधान से पूर्ण किया। इसके बाद देवतााअें ने वृत्तासुर को युद्ध के दौरान हरा दिया और देवता एवं मनुष्य सुखी हुए।
Source – Internet
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