पुजारियों ने दाखिल की पुनर्विचार याचिका, आज सुनवाई
Corridor: वृंदावन | देश के सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शुमार वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में 500 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले कॉरिडोर प्रोजेक्ट को लेकर कानूनी और धार्मिक विवाद गहराता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई को मंदिर के खजाने से जमीन अधिग्रहण की मंजूरी दी थी, लेकिन मंदिर के सेवायतों (पुजारियों) ने इस फैसले पर कड़ा ऐतराज़ जताते हुए मुख्य न्यायाधीश की अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है।
🔎 क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?
15 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने कहा था:
- कॉरिडोर निर्माण के लिए ज़मीन अधिग्रहण किया जा सकता है।
- आवश्यक धनराशि मंदिर के खजाने से ली जा सकती है।
- अधिग्रहित जमीन भगवान बांके बिहारी जी के नाम पर पंजीकृत होगी।
⚖️ आज कोर्ट नंबर-5 में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई
सेवायत देवेंद्र गोस्वामी द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया है कि:
“हमें सुने बिना एकतरफा आदेश पारित किया गया, जबकि हम मंदिर व्यवस्था के प्रमुख हितधारक हैं।”
यह याचिका कोर्ट नंबर-5 में 45वें नंबर पर सूचीबद्ध है और इसकी सुनवाई आज होनी है।
🏛️ सरकार ने बनाया मंदिर ट्रस्ट, पुजारियों को आशंका
विवाद के बीच यूपी सरकार ने बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट का गठन कर दिया है।
प्रमुख सचिव अतुल श्रीवास्तव द्वारा जारी अधिसूचना में ट्रस्ट की संरचना कुछ इस प्रकार है:
- 18 सदस्यीय बोर्ड, जिसमें:
- 7 पदेन अधिकारी
- 6 वैष्णव परंपरा से संबंधित संत/पीठाधिकारी
- 3 प्रतिष्ठित व्यक्ति (शिक्षाविद्, उद्यमी, समाजसेवी)
- 2 सदस्य मंदिर के गोस्वामी परंपरा से
इसके साथ ही मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) की नियुक्ति भी शीघ्र किए जाने की संभावना है। पुजारी वर्ग का मानना है कि यह ट्रस्ट उनके परंपरागत अधिकारों का हनन करता है और मंदिर की स्वतंत्रता को सरकारी नियंत्रण में लाता है।
🏗️ 500 करोड़ का कॉरिडोर, जमीन अधिग्रहण में उपयोग होंगे मंदिर के 450 करोड़
प्रोजेक्ट का लक्ष्य है –
- मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आवागमन सुविधा और सुरक्षा को बेहतर करना।
- लगभग 5 एकड़ में कॉरिडोर का निर्माण होगा।
- मंदिर ट्रस्ट के पास पहले से मौजूद 450 करोड़ रुपए का उपयोग भूमि अधिग्रहण में होगा।
लेकिन पुजारियों का सवाल है —
“क्या भगवान की संपत्ति का उपयोग प्रशासनिक संरचना के निर्माण में किया जा सकता है, वह भी बिना सेवायतों की सहमति के?”
⚠️ पृष्ठभूमि: विवाद कैसे शुरू हुआ?
- यूपी सरकार चाहती थी कि मंदिर के खजाने से जमीन खरीदी जाए।
- सेवायतों ने विरोध करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
- हाईकोर्ट ने खजाने के इस्तेमाल पर रोक लगा दी।
- इसके बाद ईश्वर चंद्र शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
- सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश संशोधित करते हुए खजाने के उपयोग की अनुमति दी — लेकिन जमीन भगवान के नाम पर होनी चाहिए।
📌 अगला कदम क्या?
- आज पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई अहम होगी।
- सरकार ट्रस्ट की बैठकों और CEO की नियुक्ति के ज़रिए परियोजना को आगे बढ़ा सकती है।
- सेवायत समुदाय संभवतः जन आंदोलन या अन्य कानूनी विकल्पों का सहारा ले सकता है।
🛕 एक ओर विकास, दूसरी ओर परंपरा
बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर उठते सवाल भारत में धर्म, आस्था और विकास के बीच संतुलन को लेकर एक बड़ा सामाजिक और संवैधानिक विमर्श बनते जा रहे हैं। क्या परंपरा को किनारे रखकर प्रशासनिक संरचना विकसित की जा सकती है? या क्या श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए परिवर्तन जरूरी है? इस सवाल का उत्तर अब सुप्रीम कोर्ट और समाज दोनों को देना है।
साभार….
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