Initiative: एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की योजना को लेकर सरकार और चुनाव आयोग के बीच विचार-विमर्श जारी है। सरकार का मानना है कि आदर्श आचार संहिता के चलते विकास कार्यों में रुकावट और सामान्य जनजीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है। वहीं, चुनाव आयोग इसे चुनावों में समान अवसर प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण मानता है।
विधेयक में क्या कहा गया?
संविधान संशोधन विधेयक में यह प्रस्ताव है कि चुनावों को एक साथ कराने से खर्च, समय और संसाधनों की बचत होगी। इसके अलावा, यह भी कहा गया है कि आदर्श आचार संहिता के लागू होने से सभी विकास कार्य रुक जाते हैं, जिससे प्रशासन और जनजीवन प्रभावित होते हैं।
चुनाव आयोग का दृष्टिकोण
चुनाव आयोग का मानना है कि आदर्श आचार संहिता के लागू होने से सेवाओं में रुकावट आती है और कर्मचारियों को उनके मुख्य कार्यों से हटा कर चुनावी कार्यों में लगाया जाता है। हालांकि, आयोग इसे बाधा के रूप में नहीं देखता और इसे समान अवसर प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण तरीका मानता है।
विधि आयोग और केंद्रीय कानून मंत्रालय का योगदान
चुनाव आयोग के दृष्टिकोण को विधि आयोग और केंद्रीय कानून मंत्रालय के विधि मामलों के विभाग के साथ साझा किया गया है। यह दृष्टिकोण संसद की संयुक्त समिति को भी दिया गया है, जो ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के विधेयकों की जांच कर रही है। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का प्रस्ताव चुनावी प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और समेकित बनाने का एक प्रयास है। जबकि सरकार इसे विकास कार्यों में रुकावट कम करने और संसाधनों की बचत के रूप में देखती है, चुनाव आयोग इसे चुनावों में समान अवसर सुनिश्चित करने के रूप में समर्थन करता है।
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