Home देश Royal Litchi Flavor – दिल्ली के लोग इस सीजन में लीची का स्वाद नहीं ले पाएंगे! क्या है इसकी वजह
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Royal Litchi Flavor – दिल्ली के लोग इस सीजन में लीची का स्वाद नहीं ले पाएंगे! क्या है इसकी वजह

Royal Litchi Flavorबिहार की लीची के शौक रखने वाले लोगों के लिए बुरी खबर है। हो सकता है कि इस साल वे मुजफ्फरपुर की स्वादिष्ट शाही लीची का स्वाद नहीं लें सकेंगे , क्योंकि अच्छी क्वालिटी की लीची अब तक बाजार में नहीं आ सकी है। इस बार मौसम में हुए बदलाव का असर लीची की क्वालिटी के साथ – साथ पैदावार पर भी पड़ा है। इससे लीची की उपज को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है।

विदेशों में भी निर्यात की जाती लीची | Royal Litchi Flavor

देश में लीची की सबसे अधिक खेती बिहार में की जाती है। तकरीबन 50 से 60 फीसदी लीची बिहार से दूसरे राज्यों के साथ – साथ विदेशों में निर्यात की जाती है। लेकिन, इस बार तापमान में ज्यादा अंतर होने के चलते अच्छी गुणवत्ता की लीची अब तक बाजार में नहीं आ सकी है।

जबकि हर साल 15 मई तक शाली लीची बाजार में आ जाती थी। इस बार मौसम में आए बदलाव ने सभी लीची उत्पादकों को चौंका दिया है। शुरुआत में लीची के पेड़ों में फूल अच्छे लगे थे, लेकिन लगातार गर्मी पड़ने की वजह से फल या तो पेड़ पर सूख गए या फट कर जमीन पर गिर गए।

किसानों ने बागवानी पर बहुत मेहनत की

यह स्थिति कई दशकों बाद देखने को मिली है। अभी तक प्राकृतिक तरीके से पकी हुई लीची पेड़ों से नहीं टूट पाई है। पिछले साल इस अवधि के दौरान रोज 50 से 100 मीट्रिक टन लीची ट्रेन और एयरोप्लेट के माध्यम से तोड़ी जा रही थी।

लेकिन इस बार यह आंकड़ा 10 टन तक भी नहीं पहुंच पाया है। इससे किसान और व्यापारी दोनों बहुत ज्यादा परेशान हो गए है। जबकि किसानों ने बागवानी पर इस साल बहुत ज्यादा मेहनत की थी।

इस बार जलवायु मे परिवर्तन का प्रभाव दिखाई पड़ा | Royal Litchi Flavor

ऐसे में लीची प्राकृतिक बदलाव का शिकार हो गई। लीची का पकने का समय तो आ गया है, परंतु अब तक अच्छी क्वालिटी की लीची नहीं पकी है। मौसम में हुए अचानक इस बदलाव की वजह से इस बार भी 15 दिन देरी से लीची पकेगी।

लीची की विशेषता यह है कि ये पेड़ पर ही पक जाती है और अपने स्वाद को पाती है। इसे तोड़ने के बाद फल में कोई बदलाव नहीं आता है। जबकि दूसरे फलों में तोड़ने के बाद स्वाद और रंग के बदलाव आ जाता है।

दूर्भाग्य यह है कि ज्यादा तापमान के चलते इस बार भी फलों में पल्प नहीं लगा और न ही भरपूर रस बन पाया। वहीं, विभाग ने इस बार लीची के फलों में आए बदलाव को लेकर अनुसंधान शुरु कर दिया है।

50 प्रतिशत फल पेड़ों पर लगे हैं

मुजफ्फरपुर के कांटी में लीची की खेती करने वाले किसानों ने कई सालों से आर्गेनिक लीची की खेती कर रहे हैं। पिछले कई सालों से अच्छी कमाई कर रहे थे। लेकिन इस बार की फल ने निराश कर दिया है।

उन्होंने बताया कि इस बार लागत भी नहीं निकल पाएगी। फल छोटे होने की वजह से अभी सिर्फ 80 से 90 रुपये सैंकड़ा ही लीची बेच रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बार 50 फीसदी फल ही पेड़ों पर लगे हैं।

Source – Internet

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